Vastu

What is Vastu?

Vastu is an ancient science of architectural and buildings to provide a positive environment to live and work successfully by observing the elements and energy fields & finally enhance health, wealth, prosperity and happiness. Direction plays important role in balancing the 5 elements in Vastu. The whole universe is made of 5 elements are: space, air, fire, water and earth. When the harmony among all elements is balanced then providing peace, prosperity and good health to all occupants of building, if it disturbed in different directions leading to stress, tension and ill health and finally will destroyed the mind peace of occupant. Below are the placement of universal elements according to 4 principal directions.

  1. North-East (NE) for Water: have a bore well, underground water tank in that position.
  2. South-East (SE) for Fire: have kitchen, pantry, furnace, boiler in this zone.
  3. North-West (NW) for Air: have a guest-room bed room for unmarried girls or a store room.
  4. South-West (SW) for Earth: keep in this zone heavy items and is best for master Bed Room.
  5. Centre for Space: have the least possible activity in this area.

Vaastu Purush is present in each and every plot keeping head remains hanging down and his body is spread all over the length and breadth of the plot. Vastu purush is the deity responsible for the strength and happiness in the site. There are 45 deities including Devta & Danav.

When a house constructed on a particular plot has direct relationship with the electromagnetic forces and the gravitational fields of earth and other planets together with effects of cosmic origin. Understanding of these forces and energy fields counterbalance by gravitational mass to attain dynamic balance, it is the basic philosophy of Vaastu Shastra. North-East is the input of source energy within a plot / house and the South-West is sink of all energy in that plot / house.

Generally, People have believed that East and North facing plots are auspicious and South and West facing plots are not to be preferred. Actually, no direction is good or bad in itself. However, North & East facing plots have certain inherent advantages which is a natural characteristic of the plot. This will be missing in South and West facing plot and will have to be put in at extra cost.

DIRECTIONS IN THE PLOT AND BUILDING

वास्तु क्या है?

दिशाओं के सही ज्ञान को वास्तु कहा जाता है। इस पद्धत्ति में दिशाओं को ध्यान में रखकर भवन निर्माण और भवन की साजो-सजावट (इंटीरियर डेकोरेशन) होती है। वास्तु में दिशाओं को बहुत महत्व दिया गया है। घर यदि दिशाओं को ध्यान में रखकर बनाया जाये तो परिवार में खुशहाली और सम्पन्नता आती है। वास्तु के अनुसार कुल 8 दिशाएं होती हैं। ये 8 दिशाएं हैं- पूर्व, ईशान, उत्तर, वायव्य, पश्चिम, नैऋत्य, दक्षिण और आग्नेय।

शास्त्रों के अनुसार जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश, इन पांचो तत्वों के बीच होने वाली इस परस्पर क्रिया हो ही हम वास्तु के नाम से जानते हैं, जिसका प्रभाव व्यक्ति के भाग्य, स्वभाव, कार्य प्रदर्शन और जीवन के दूसरे पहलुओं पर भी पड़ता है।


वास्तु शास्त्र का महत्व

किसी व्यक्ति के भाग्य वृद्धि के लिए वास्तु शास्त्र के नियमों का बहुत महत्व है। घर हो या ऑफिस अगर वास्तु ठीक ना हो तो यह भाग्य को बाधित करता है। वास्तु सिद्धांत के अनुसार बना घर और उसमें वास्तु के हिसाब से दिशाओं में सही स्थानों पर रखी गई वस्तुएं, घर में रहने वाले लोगो के जीवन में शांति और सुख लाता है। इसलिए जरूरी है कि भवन निर्माण से पहले आप किसी वास्तु विशेषज्ञ से परामर्श ले कर वास्तु सिद्धांतों के अनुसार ही घर बनाएं।

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर बनाते समय न केवल उसकी रचना बल्कि जगह, उसकी दिशा और उस जगह का ढलान आदि को भी ध्यान में रखा जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर बनाते समय हर चीज़ सही दिशा में होनी चाहिए जैसे घर का मुख्य द्वार उत्तर या तो उत्तर पूर्व या पूर्व दिशा में, रसोई घर दक्षिण-पूर्व कोने में हो, पूजा घर उत्तर में, बाथरूम की जगह और सोने का कमरा आदि सभी निर्धारित जगह पर होने चाहिए।

हमेशा वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का नक्शा बनवाएं। भवन निर्माण करते समय नीचे दी गयी कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखें –

  1. रसोई – रसोई के स्थान के लिए घर का दक्षिण-पूर्व कोना सबसे अच्छा माना जाता है। कभी भी रसोई, घर के मुख्य द्वार के सामने स्थित नहीं होनी चाहिए।
  2. बेडरूम – घर के दक्षिण पश्चिम कोने पर मास्टर बेडरूम स्थित होना चाहिए। बेडरूम चौकोर और आयताकार आकार के हो तो यह ज्यादा बेहतर रहते है।
  3. दरवाजें – बेडरूम का दरवाजा ऐसा होना चाहिए कि वो नब्बे डिग्री पर खुले।
  4. भोजन कक्ष – भोजन कक्ष कभी भी दक्षिणी दिशा की ओर इशारा करते हुए नहीं बनाएं।
  5. ड्राइंग रूम – किसी जरूरी बैठक करने वाले कमरों का निर्माण उत्तर या पूर्व का सामना कर रही दिशा में और मेहमानों के लिए बैठने वाले कमरों का निर्माण दक्षिण या पश्चिम का सामना करते हुए बनवाना चाहिए।
  6. छत / बालकनी – स्वास्थ्य, धन और खुशी के लिए ये सभी केवल घर के उत्तर, पूर्व एवं उत्तर-पूर्व पक्षों में स्थित होने चाहिए। बालकनियों का सामना उत्तर और पूर्व दिशा से होना चाहिए।
  7. कारों के लिए गैरेज – दक्षिण-पूर्व या उत्तर-पश्चिम गेराज के लिए सबसे अच्छी जगह है।
  8. स्विमिंग पूल – स्विमिंग पूल के लिए सबसे अच्छी जगह उत्तर-पूर्व की ओर है।
  9. भूमिगत जलाशय या पानी की टंकी- उत्तर-पूर्व भूमिगत जलाशय या पानी की टंकी के लिए सबसे सही जगह है।
  10. पेड़ – बागानी या वृक्षारोपण के लिए दक्षिण-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम दिशा बिलकुल सही नहीं हैं।
  11. बाहरी गेट्स – आम तौर पर उत्तर, उत्तर-पूर्व और पूर्व दिशाओं में गेट बनवाना शुभ होता है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय का निर्माण दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम दिशा में ही करें। घर बनाते समय शौचालय का निर्माण कभी भी घर के उत्तर-पूर्व दिशा, दक्षिण-पूर्व दिशा या फिर मध्य में नहीं किया जाना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के उत्तर या पश्चिम दिशा में ही शौचालय का गटर बनाएं। बाथरूम के दरवाजे एवं खिड़कियां केवल दक्षिण दिशा को छोड़कर दूसरे किसी भी दिशा में बना सकते हैं। शौचालय में नल का स्थान उत्तर-पूर्व दिशा या फिर पश्चिम दिशा में रखना अच्छा माना जाता है। और एक बात जो सबसे ध्यान देने वाली है कि कभी भी शौचालय, रसोई और पूजा घर एक दूसरे के निकट नहीं बनाएं।

वास्तु दोष

कभी-कभी ऐसा लगता है कि लाख परिश्रम के बाद सफलता नहीं मिल पा रही है या फिर कमाया हुआ धन रुक नहीं रहा, आय दिन घर में हो रहे झगड़े, स्वास्थ संबंघी समस्याएं और मानसिक अशांति ये सब वास्तु दोष के लक्षण होते हैं। अधिकंश तौर पर घर बनाते समय कुछ न कुछ कमियां रह जाती हैं जिसकी वजह से घर पर वास्तु दोष बना रहता है। यह एक ऐसा दोष होता है जो आपकी खुशहाली, तरक्की, पैसा, मान-सम्मान आदि जैसी चीज़ों में मुश्किलें पैदा करता है।

किसी नए घर में प्रवेश करते समय इस बात का पता अवश्य लगा ले कि घर पर वास्तु दोष है या नहीं! दोष का पता लगाने के लिए आप सबसे पहले एक नवजात शिशु को घर के अंदर ले जाएं। यदि बच्चा घर में प्रवेश करते ही रोने लगे तो समझ लें कि उस घर में नकारात्मक ऊर्जा है और उस घर का वास्तु सही नहीं है।

वास्तु के अनुसार घर में मंदिर

वास्तुशास्त्र के उपाय के अनुसार ईशान कोण देवता का स्थान है इसलिए इस स्थान पर मंदिर होना चाहिए। इससे घर में हमेशा सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है और परिवार वालों के ज्ञान में वृद्धि होती है। पूजा करते हुए मुख पूर्व की तरफ़ होना चाहिए। इसके अतिरिक्त उत्तर दिशा की ओर मुख करके भी पूजा की जाती है। ऐसा करने से घर में धन व समृद्धि आती है। वहीं अगर आप अभी पढ़ाई कर रहे हैं तो पूर्व अथवा उत्तर दिशा की तरफ़ मुख करके अध्ययन करें।

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